अल्मोड़ा-उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी व एजुकेशनल मिनिस्ट्रीयल आफीसर्स एसोसिएशन के पूर्व मंडलीय अध्यक्ष जगमोहन सिंह खाती,उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन जनपद अल्मोड़ा के अध्यक्ष डा मनोज कुमार जोशी एवं सचिव धीरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि उत्तराखंड की अब तक की सरकारें पर्वतीय क्षेत्रों के लिए कभी भी गंभीर नहीं रही जिसका परिणाम यह रहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले कार्मिक व जनता दोनों पिस गये है।धीरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि वर्ष 1994 में उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए तीन महीने से ज्यादा हड़ताल की गई और आज सरकारों द्वारा कार्मिकों व शिक्षकों को हाशिए पर रख दिया है जो कि अन्याय पूर्ण स्थिति है।उत्तराखंड को बने हुए 23 वर्ष हो गए हैं लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा जारी है।पृथक उत्तराखंड राज्य बनने पर रह अपेक्षा थी कि सभी जनपदों का समान विकास होगा और राज्य की राजधानी भी पहाड़ी क्षेत्र में होगी लेकिन राजधानी के नाम पर खाली गैरसैंण में खानापूर्ति हो रही है।विभागों की स्थिति देखेंगे तो 25-30 प्रतिशत पद रिक्त मिलेंगे ऐसे में कार्य किस तरह हो सकता है समझा जा सकता है।सबसे बड़ी बेकद्री शिक्षा विभाग की है यहां विद्यालयों में प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक के लगभग अस्सी प्रतिशत से अधिक पद खाली है।ऐसे में आहरण वितरण अधिकारी भी नहीं है और मिनिस्टीरियल कार्मिकों को इस हेतु दूर दूर जाकर आहरण वितरण अधिकारी से हस्ताक्षर कराने पड़ते हैं। एक्ट लागू हुआ तो उसे भी 10 प्रतिशत तक सीमित कर दिया जाता है और हरिद्वार,देहरादून,नैनीताल व ऊधमसिह नगर की ओर ही उत्तराखंड सीमित हो रहा है।बंदरों व सुअरों के कारण गांव के गांव पलायन हो गये है सरकार बंदरबाडा बनाने के लिए भी तैयार नहीं है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है।पर्वतीय क्षेत्रों की यहां के जनप्रतिनिधियों ने ही उपेक्षा कर दी और पर्वतीय क्षेत्रों में आज कोई रहने को भी तैयार नहीं है और विशेषकर चिकित्सा के क्षेत्र में डाक्टर भी अपनी सेवाएं देने में असमर्थ हो रहे हैं।पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग से रोड मैप बनाने की आवश्यकता है।सड़कों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है तथा कई गांवों में अभी तक सड़कों का जाल नहीं बिछा है और मरीजों को डोली में लाने की स्थिति बन जाती है। जंगल हर साल आग की भेंट चढ़ रहें हैं क्योंकि चीड़ के वृक्ष से गिरने वाले पिरूल के सम्बन्ध में कोई व्यवस्था नहीं है और आग लगने का मुख्य कारण यही है। पिरूल से बिजली,कोयला,गत्ता व फाइल इत्यादि बन सकते है लेकिन इस पर ज्यादा ध्यान फोकस नहीं होता।उत्तराखंड से नदियां निकलती है उन पर शुद्ध पानी की बोतल भरने का काम हो सकता है।प्लांट लगाने की आवश्यकता है लेकिन कुछ नहीं है। जगह जगह झील बनाकर पर्यटन का विकास हो सकता है लेकिन उस पर भी ध्यान नहीं दिया जाता।आजादी के बाद से ही मैदान बनाम पर्वतीय क्षेत्र में विकास के पैमाने विरोधाभासी रहे हैं। सड़कों की हालत बहुत अच्छी नहीं है और पैराफिट का भी अभाव है।जिन सड़कों को आज तक डबल लेन में बदल देना चाहिए था उन्हें भी नहीं बदला गया।कार्मिकों द्वारा विषम परिस्थितियों में कार्य किया जाता है। पहाड़ पर शत् प्रतिशत स्टाफ होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं होता है। जनता को वोट बैंक की नजर से ही देखा जाता है। उत्तराखंड के सभी विद्यालयों में व्यवसायिक शिक्षा देनी शुरू कर देनी चाहिए जबकि ऐसा नहीं है और स्किल डेवलपमेंट पर भी जोर दिए जाने की आवश्यकता है ताकि छात्र जीवन से ही विकास हो सके। बंदरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए 95 ब्लाकों में बंदरबाड़ा बनाने की आवश्यकता है। सुअरों से निपटने के लिए भी विशेष नीति बनाने की आवश्यकता है अब तो गुलदार का आतंक भी चरम पर है कभी किसी भी इंसान की जान चली जाती है सरकार इस मुद्दे पर भी गंभीर नहीं है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी जगमोहन सिंह खाती ने कहा कि आहरण वितरण अधिकारी को भी 50 किलोमीटर से अधिक के दायरे में ढूंढना पड़ता है जिससे कार्मिकों में विभाग के प्रति असंतोष व्याप्त है। मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों को आहरण वितरण अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि कार्य आसानी से सम्पन्न हो सके।डा मनोज कुमार जोशी ने कहा कि इस राज्य में बहुत कमियां हैं उन्हें दूर किया जाना बहुत जरूरी है। शासकीय विद्यालयों में जो सुविधाएं उपलब्ध हैं वहीं सुविधा राज्य सरकार की ओर से अशासकीय विद्यालयों को भी दी जानी चाहिए। उत्तराखंड में बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर भी अंकुश जरूरी है अन्यथा उत्तराखंड में रहना भी मुश्किल हो जाएगा। रोजगार के क्षैत्रो का विकास करके पलायन को भी रोका जा सकता है। जिस तरह यहां पदों पर नियुक्ति होने के बाद भी कई विभागों के कार्मिक व चिकित्सक यहां ड्यूटी के लिए तैयार नहीं होते इसको देखते हुए स्थानीय स्तर पर लोगों की भर्ती करनी चाहिए ताकि पद किसी भी दशा में खाली न रहे।जंगलों में भी फलदार वृक्ष लगाने की मुहिम भी शुरू करने की आवश्यकता है। हर जिले के मुख्यालय को भी हवाई सेवा में जोड़ना चाहिए ताकि पलायन पर भी रोक लगे।हर ब्लाक में अन्तर्राष्ट्रीय स्टेडियम होना चाहिए ताकि खेल गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके और यहां अन्तर्राष्ट्रीय मैचों का भी आयोजन हो।भू- कानून को भी राज्य के मूल निवासियों को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए और हर माह विधायक व सांसदों द्वारा भी खुला दरबार लगाकर जनता की समस्यायों का समाधान करना चाहिए। 23 वर्षों में जो कमियां रह गई है उन्हें दूर किया जाना होगा तभी पृथक उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना साकार होगी। राज्य आंदोलनकारी जगमोहन सिंह खाती, हरिशंकर सिंह नेगी पूर्व जिलाध्यक्ष नैनीताल ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों भावना के अनुरूप राज्य विकसित नहीं हुआ और मूलभूत समस्याओं का ही निराकरण नहीं हुआ।उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन के अध्यक्ष डा मनोज कुमार जोशी व सचिव धीरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि मूलभूत सुविधाओं का जाल पर्वतीय क्षेत्रों में भी बिछाना होगा और सरकारी नौकरी में स्थानीय लोगों को भी वरीयता दी जाय जिससे पलायन भी रूकेगा और लोगों को भी रोजगार मिलेगा। एजुकेशनल मिनिस्ट्रीयल आफीसर्स एसोसिएशन कुमाऊं मण्डल नैनीताल के अध्यक्ष पुष्कर सिंह भैसोड़ा द्वारा भी कहा गया कि सभी समस्याओं का समाधान करना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए।

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