अल्मोड़ा-प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष कार्मिक एकता मंच उत्तराखंड धीरेंद्र कुमार पाठक ने आज जारी एक बयान में कहा कि सरकार द्वारा धरना प्रदर्शन,आंदोलन,अनशन,आमरण अनशन पर कोविड काल में रोक लगाकर एक प्रकार से मानवाधिकार पर चोट पहुंचाने का काम किया है।जब हर जगह संख्या निर्धारित कर दी गई थी तो यहां भी संख्या निर्धारित कर देते कम से कम संगठन के प्रतिनिधि अपने विभाग पर दबाव तो बना सकते थे।धरना प्रदर्शन,आंदोलन नहीं होने से अधिकारियों द्वारा मनमानी की गई और भर्ती वर्ष समाप्त होने को है कई विभागों में कोई पदोन्नति भी नहीं हुई। उन्होंने कहा कि सरकार के मंत्रियों के भी निर्देश विभाग के अधिकारियों द्वारा नहीं माने गए हैं।इस प्रकार सरकार पदोन्नति नहीं होने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से जिम्मेदार हो गई है और लोकतंत्र की जड़ धरना प्रदर्शन पर रोक लगाकर लोकतंत्र की ही हत्या करने का काम किया गया है।कोविड काल में पचास प्रतिशत के आधार पर कार्यालय खुले रहे लेकिन पदोन्नति सूची जारी करने के कोई प्रयास नहीं हुए।संगठन द्वारा पत्र लिखकर कोशिश भी की गयी।लगातार मीडिया के माध्यम से भी दबाव भी बनाया गया लेकिन अधिकारियों पर असर नहीं हुआ।ये वही कर्मचारी हैं जिन्होंने राज्य प्राप्ति के लिए 94 दिन की हड़ताल की।आज उनके सेवा के प्रतिफल को भी बाधित कर दिया गया।एक्ट में पदोन्नति अनिवार्य रूप से दुर्गम कर दी गई है लेकिन दो साल से एक्ट के तहत स्थानांतरण नहीं होने से नजदीकी पिछले वर्ष तक की पदोन्नति से दुर्गम सभी भरे हुए है और सुगम क्षेत्र सब खाली हो गए हैं।नैनीताल,हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर,देहरादून जैसे जिलों में दुर्गम बहुत कम है और हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में दुर्गम क्षेत्र ढूंढने से शायद मिले ऐसे में उन जनपदों के कार्मिकों को अनिवार्य पदोन्नति में बाहर जाना पड़ेगा।ऐसे में जबकि एक्ट शत् प्रतिशत लागू नहीं होता और पदोन्नति जब भी होती है दुर्गम में होगी वह भी जिले से बाहर।मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को तो बिना मतलब जिला बदर कर दिया गया है। ऊपर से फारगो नियमावली अलग से है यानि दो पदोन्नति नहीं जाने पर तीसरी बार प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरण।यह काला कानून अलग से है और वरिष्ठता भी प्रभावित होगी।उन्होंने कहा कि हर जिले में दुर्गम क्षेत्र का निर्धारण भी जरूर करना चाहिए था।अब हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर पूरा सुगम है तो वहा के कार्मिकों के हितों के साथ खिलवाड़ है ऐसे में हर जिले में 20-30 प्रतिशत स्थान अनिवार्य रूप से दुर्गम श्रेणी में दर्ज होने चाहिए।कुल मिलाकर सरकार द्वारा सरकारी कार्मिकों के गले में रस्सी ऐसी कस दी है जो छूट नहीं सकती है।गोल्डन कार्ड, शिथिलीकरण,ए सी पी,पुरानी पेंशन ऐसे विषय हो गये है जो लाइलाज हो गये है।चिकित्सा प्रतिपूर्ति की व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया है और कर्मचारियों द्वारा त्राहि माम किया जा रहा है और सरकार के कानों में जूं भी नही रेग रही है।पदोन्नति व स्थानांतरण को समयबद्ध होना चाहिए था लेकिन फिर वही स्थिति।पदोन्नति सेवा का प्रतिफल है उसे रोकना मानवाधिकार का सरासर उल्लंघन है।सरकार की नीतियों ने उत्तराखंड में नादिरशाही रवैए की याद दिला दी है और एक्ट में पदोन्नति में विकल्प या काउंसिलिंग की स्पष्ट व्यवस्था नहीं करने के कारण अधिकारियों को मनमानी का मौका दे दिया है।वह पदोन्नति में तीसरा चौथा जिला दे रहे हैं जबकि नजदीक क्षेत्रों में भी पद रिक्त हैं।अलगअलग श्रेणियों में ऐसा विगत वर्ष देखा गया है। पदाधिकारियों को दो वर्ष तक एक स्थान पर रखने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।कोविड की आड़ में कर्मचारियों का गला घोंटा जा रहा है और रही सही कसर आंदोलन पर रोक लगाकर सरकार ने पूरी कर दी है ऐसा तंत्र लोकतंत्र नहीं कहलाता है।उन्होंने कहा कि संगठन अपनी मांग मनवाने के लिए सक्षम है लेकिन बर्खास्त करने की धमकी देकर काला कानून पास कर दिया और अधिकारियों द्वारा मनमानी की जा रही है।सरकारों द्वारा पी आई एल लगाकर या शासनादेश जारी कर कर्मचारियों के हितों को बाधित करना काला अध्याय है।इससे सैकड़ों पदोन्नति के अवसर इस भर्ती वर्ष में समाप्त कर दिए गए हैं।सरकार को आंदोलन करने के लिए संख्या निर्धारित कर देनी चाहिए अन्यथा यह स्थिति कभी विस्फोटक रूप लेगी तो संपूर्ण उत्तरदायित्व सरकार का होगा।उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पदोन्नति व स्थानांतरण की समीक्षा भी जरूर करनी चाहिए।कार्मिकों को उनके अधिकारों से वंचित करने की जितनी निंदा की जाए कम है।अब सरकार ही बताये कि इन परिस्थितियों में संगठन के प्रतिनिधि सदस्यों को क्या जबाव दें।सरकार का गलत निर्णय सदस्यों व पदाधिकारियों पर भारी पड़ रहा है।संगठन को भी लील रहा है।विरोध का अधिकार लोकतंत्र में नागरिक का मूल अधिकार है।इसको हर हाल में बहाल करना चाहिए।मुख्यमंत्री उत्तराखंड को इन सब बातों का संज्ञान लेना चाहिए।यह स्थिति ठीक नहीं है।