अल्मोड़ा-उत्तरांचल फैडरेशन ऑफ मिनिस्टीरियल सर्विसेज एसोसिएशन के पूर्व मंडलीय अध्यक्ष धीरेन्द्र कुमार पाठक ने प्रैस को जारी एक बयान में कहा कि सरकार व शासन वर्तमान में संगठनों को आश्वासन की घुट्टी पिला रहे हैं यह ठीक नहीं है।फैडरेशन द्वारा 25 सूत्रीय मांगों पर पिछले वर्ष से कोशिश की जा रही है लेकिन शासन द्वारा सभी मामलों में परीक्षण की बात कही जा रही है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।शिथिलीकरण जैसे मुद्दे पर शासनादेश जारी नहीं होना यह दर्शाता है कि सरकार व शासन समस्या के प्रति गंभीर नहीं है।इसके विपरीत दिन प्रतिदिन कार्य का लोड बढ़ाया जा रहा है।उत्तराखंड में शिथिलीकरण को हमेशा के लिए बहाल किया जाना चाहिए।उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन उत्तराखंड के बैनर तले इस राज्य के लिए 94 दिन का संघर्ष किया था। किसी को भी राज्य आंदोलनकारी घोषित नहीं किया और अब जायज मांगों पर भी परीक्षण की बात की जा रही है ऐसा प्रतीत होता है कि निर्णय लेने की क्षमता भी नहीं रही।भर्ती वर्ष के 6 माह शेष है और शिथिलीकरण का शासनादेश जरूरी है।मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों को आहरण वितरण अधिकार हेतु पांच वर्ष की सेवा में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद पर की गई सेवा को नहीं जोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।शासन स्तर पर भी शासनादेश जारी होते समय पूर्व शासनादेश का भी ध्यान नहीं रखा जाता है इसके कारण विसंगति उत्पन्न हो रही है।मिनिस्ट्रीयल कार्मिकों को भी नियुक्ति के बाद अनिवार्य रूप से प्रशिक्षित किया जाना अनिवार्य है।वित्त एवं लेखा प्रशिक्षण भी अनिवार्य रूप से दिया जाना आवश्यक है।समूह ग के पदों पर भी भर्ती अभियान चलाया जाना जरूरी है।सूचना अधिकार के तहत पदों का सृजन नहीं किया जाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है सरकार द्वारा केवल आयोग बनाकर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली और अब समीक्षा की आवश्यकता भी नहीं समझी। संगठन के पदाधिकारियों को भी आश्वासन की घुट्टी पर मानने के बजाय सरकार व शासन को आंदोलन का नोटिस दिया जाना चाहिए और उस पर अमल करना भी सीखना होगा अन्यथा सरकार हजारों कार्मिकों के मुद्दों के साथ खिलवाड़ करती रहेगी। एक वर्ष से भी अधिक समय से कार्मिकों की किसी भी महत्वपूर्ण मामले में विचार नहीं किया जाना बहुत ही खेद पूर्ण स्थिति है।एक समय फैडरेशन को उत्तराखंड का आक्रामक संगठन माना जाता है जो अपनी मांगों के लिए एक महीने तक भी हड़ताल करने से पीछे नहीं हटते थे लेकिन आज स्थिति ऐसी हो गई है कि कोई उपलब्धि न मिलने के बाद भी संगठन शीर्ष स्तर पर खामोश हो गया है। अतिरिक्त कार्य भार के कारण वर्क लोड बढ़ रहा है और विभागों में कोई सुनवाई नहीं है।एक्ट विसंगति के कारण समस्या समाधान नहीं हो रहे हैं।स्थानांतरण के समय पहले सुगम से दुर्गम व फिर दुर्गम से सुगम होना चाहिए लेकिन यहां दूसरे नम्बर पर अनिवार्य स्थानांतरण न होकर अनुरोध पर स्थानांतरण कर दिया गया है जिससे दुर्गम पर कार्यरत सदस्यों के हितों पर कुठाराघात हो रहा है।शासन को अवगत कराने के बाद भी कार्यवाही नहीं होना यही दर्शाता है कि उत्तराखंड सरकार कार्मिकों के हितों के लिए संकल्पित नहीं है।पुरानी पेंशन बहाली व्यवस्था नहीं किया जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।जब मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री,सांसद,विधायक पुरानी पेंशन ले सकते हैं लेकिन कार्मिक को नई पेंशन की ओर धकेलना ठीक नहीं है।संगठन के शीर्ष पदाधिकारियों को अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए इस प्रकार समय निकालना ठीक नहीं है।संगठन का समर्पण करना ठीक नहीं है।धीरेन्द्र कुमार पाठक पूर्व मंडल अध्यक्ष फैडरेशन व पूर्व मंडलीय सचिव एजुकेशनल मिनिस्ट्रीयल आफिसर्स एसोसिएशन कुमाऊं मण्डल नैनीताल ने कहा कि कार्मिकों के हितों के साथ खिलवाड़ किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।सरकारें अपने जगह होती है उन्हें भी सेवा नियमावली के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।वर्तमान में शिथिलीकरण शासनादेश का निकलना जरूरी है।धीरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि सरकार को संगठनों को कोमा में नहीं डालना चाहिए और आश्वासन की घुट्टी पर वार्ता नहीं करनी चाहिए।आश्वासन पर आश्वासन संगठन को खत्म कर सकता है यह बर्दाश्त करने योग्य नहीं है।सरकार व शासन को फैडरेशन के सभी 25 लंबित मुद्दों पर कार्यवाही कर शासनादेश जारी करना चाहिए। विभाग को विद्यालयों में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पदों पर गंभीर विचार करना चाहिए।अगर सम्मान नहीं कर सकते हैं इन पदों को सम्मान के साथ अन्य शीर्ष कार्यालय में पदस्थापित करना चाहिए।मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों को आहरण वितरण अधिकारी का दायित्व भी दिया जाना चाहिए और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को भी आहरण वितरण अधिकार दिए जाने हेतु शासनादेश जारी करना चाहिए जिससे कार्य संचालन में आसानी हो। सरकार व शासन को बिलों के कालातीत की अवधि दो वर्ष करनी चाहिए ताकि सभी बिलों का निस्तारण हो सके और अनावश्यक पत्राचार से बचा जा सकें।

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