अल्मोड़ा-एजुकेशनल मिनिस्ट्रीयल आफीसर्स एसोसिएशन कुमाऊं मण्डल नैनीताल के पूर्व सचिव व पूर्व अध्यक्ष फैडरेशन कुमाऊं मण्डल नैनीताल ने जारी बयान में कहा है कि सरकार पदोन्नति व स्थानांतरण के लिए गंभीर नहीं है।वर्तमान में विभागों में पदोन्नति के साथ साथ शिथिलीकरण के तहत पदोन्नति व सामान्य पदोन्नति दोनों की प्रक्रिया चल रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता भी लागू की गई है और 4 जून तक प्रभावी है उसके बाद निकाय चुनावों की भी हलचल चल रही है। यहां सवाल यह उत्पन्न हो रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा एक महीने के बाद भी शिथिलीकरण शासनादेश के अनुसार पदोन्नति हेतु अनुमति नहीं दी गई है और समय तेजी के साथ खत्म हो रहा है और भर्ती वर्ष की ओर बढ़ रहा है।इस बीच विभाग द्वारा सुगम से दुर्गम व दुर्गम से सुगम व अनुरोध के आधार पर आवेदन पत्र आमंत्रित कर दिये गये है। इससे एक सवाल हो रहा है कि अगर बीच में शिथिलीकरण के तहत अनुमति मिलती है या 4 जून के बिना विभाग पदोन्नति करेगा तो किन पदों को रिक्त माना जायेगा क्योंकि अनिवार्य व अनुरोध में स्थानांतरण के लिए कार्मिकों द्वारा उन रिक्त पदों का चयन किया गया है जो कि वर्तमान में रिक्त हैं ऐसी स्थिति में पदोन्नति होती है तो रिक्त पदों का हिसाब किताब क्या होगा यह यक्ष प्रश्न बन गया है यानि एक तरह के लौक की स्थिति बन रही है।इससे निपटने की आवश्यकता है। दो विकल्प शेष है एक तो विभाग को अनुरोध व अनिवार्य स्थानांतरण 10 जून तक निस्तारण कर देने चाहिए और उसके बाद रिक्त पदों पर पदोन्नति कर देनी चाहिए ताकि उपलब्ध रिक्त पदों पदोन्नति हो सके।दूसरा विकल्प यह रहेगा कि वर्तमान विचित्र स्थिति में विभाग पदोन्नति कर दें जिससे वेतनादि का लाभ प्राप्त हो सकें और पदस्थापना रिक्त पदों की स्थिति उपलब्ध होने पर काउंसलिंग के माध्यम से कर दे।इससे स्पष्ट रूप से भर्ती वर्ष बच सकता है और कार्मिकों को नुकसान नहीं होगा यही नियम सामान्य अन्य पदोन्नति वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी व अन्य पदों पर भी लागू कर देना चाहिए ताकि उन्हें भी भर्ती वर्ष का नुकसान न हो ऐसा करने पर भर्ती वर्ष बच सकता है अन्यथा भर्ती वर्ष का संकट खड़ा हो सकता है क्योंकि रिक्त पदों की स्थिति स्थानांतरण व पदोन्नति प्रक्रिया एक साथ करने पर लौक हो गई है।जिन सदस्यों ने एक्ट के तहत विकल्प वर्तमान रिक्त पदो का दे दिया है उसे काटा भी नहीं जा सकता है और पदोन्नति का हवाला देते हुए दुबारा विकल्प भी नहीं मांगे जा सकते क्योंकि एक्ट में एक दिया गया विकल्प ही अंतिम होता है।चुनाव आयोग द्वारा 19 अप्रैल के बाद चुनाव होने पर भी अब 22 मई हो गई है ऐसे में पदोन्नति की अनुमति नहीं देना भारी चिन्ता का विषय बन गया है।इन परिस्थितियों में हर हाल में भर्ती वर्ष के भीतर पदोन्नति होनी चाहिए उसके विकल्पों पर विचार जरूरी है अन्यथा उत्तराखंड में जो चल रहा है वह भारी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। संगठन में वर्तमान पद धारकों को भी गंभीरता समझनी चाहिए और लगातार विभागीय वार्ता कर सदस्यों की पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।